विश्व प्रसिद्ध और करोड़ों हिंदुओं की आस्था के धाम बदरीनाथ में स्थित ब्रह्मकपाल तीर्थ में पित्रों का पिंड दान करने की प्रक्रिया आज पहले श्राद्ध से प्रारंभ हो गई है। आज पहले दिन सैकड़ों श्रद्धालुओं ने ब्रह्मकपाल में अपने पित्रों का पिंडदान किया और तर्पण दिया। चंद्रग्रहण के चलते आज ब्रह्मकपाल में दोपहर 12 बजे तक ही पिंडदान और तर्पण श्रद्धाओं द्वारा दिया गया।
बदरीनाथ धाम के समीप ब्रह्मकपाल में श्राद्ध के अवसर पर पिंडदान और देने का विशेष महत्व बताया गया है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि बदरीनाथ के ब्रह्म कपाल में पित्रों का पिंडदान करना आठ गुना अधिक फलदायी और फलित होता है।
बदरीनाथ मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी आचार्य भुवन उनियाल ने बताया ब्रह्मकपाल तीर्थ में पित्रों को तर्पण देने और पिंडदान से पित्रों की आत्मा को शान्ति मिलती है। श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही भारत के अलग अलग राज्यों के श्रद्धालु बदरीनाथ पहुंच कर अपने पित्रों का पिंडदान करते है। ब्रह्मकपाल तीर्थ पुरोहित अध्यक्ष उमेश सती का कहना है कि ब्रह्म कपाल में पितरों को पिंडदान का विशेष महात्म्य है।
स्कंदपुराण में इस पवित्र स्थान को गया से आठ गुना अधिक फलदायी तीर्थ कहा गया है। बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल में तर्पण और पिंडदान करने की महत्वपूर्ण प्रकिया है। श्रद्धालु को अपने पित्रों का पिंडदान करने से पहले बदरीनाथ के पवित्र तप्तकुंड में स्नान करना पड़ता है। तीर्थ पुरोहित के साथ ब्रह्म कपाल में पितरों का ध्यान किया जाता है।
पौराणिक मान्यता है कि कारणवश जब भगवान शिव ब्रह्मा जी पर क्रोधित हो गये थे, तो आक्रोश में आकर भगवान शिव ने ब्रह्मा के पांच सिरों में से एक पर त्रिशूल के वार से काट दिया। ब्रह्मा जी का सिर त्रिशूल पर ही चिपक गया। ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए जब भोलेनाथ पृथ्वी लोक के भ्रमण पर गए तो बदरीनाथ से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर जमीन पर गिर गया। तभी से यह स्थान ब्रह्म कपाल के रुप में प्रसिद्ध हुआ। गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्ग की ओर जा रहे पांडवों ने भी इसी स्थान पर अपने पितरों को तर्पण दिया था।