जागर गीतों के साथ देवी माँ नन्दा का आह्वाहन और जागर गीतों के साथ ही माँ नंदा की कैलास विदाई अपने आप मे अद्भुत है

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि गढ़वाल हिमालय के पर्वतीय गांवों में एक विशेष महत्व रखती है। अपनी बेटी, माँ और अधिष्ठात्री देवी नन्दा गढ़वाल हिमालय की जीवन पद्धति में रची-बसी है।

गढ़वाल हिमालय के गांवों में कहीं माँ नन्दा को देवी के रूप में तो कहीं बेटी के रूप में पूजा जाता है। पैनखंडा क्षेत्र के दर्जनों गांवों में भी कुछ इसी प्रकार की परंपरा है जहां देवी नंदा को कई गांव ससुराल पक्ष रूप में पूजते है तो कहीं मायके पक्ष में होने के रूप में पूजते है।

गांवों में भाद्रपद की शुक्ल षष्टी तिथि से लेकर नवमी दशमी तिथि और कहीं-कहीं पूर्णमासी तक माँ नन्दा के आह्वान और विदाई पर विशेष मेले आयोजित होते है। 12 वर्षों में हिमालयी महाकुंभ और सबसे लंबी दूरी तय करने वाली दुनियां की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा भी देवी नंदा की कैलास विदाई की यात्रा है।

पैनखंडा क्षेत्र के सेलंग गांव में हर वर्ष देवी नंदा के उत्सव नंदा अष्टमी को धूम-धाम से मनाया जाता है। उच्च हिमालयी क्षेत्र से देवी नंदा के बुलावे के रूप में फुलारी पवित्र ब्रह्मकमल लेकर गांव में प्रस्थान करते है और इसी के साथ दो दिवसीय नंदा अष्टमी मेला आयोजित होता है।

देवी नन्दा के जागर गीतों के साथ माँ नंदा का आह्वान, शयन और फिर जागरण ये सब विशेष जागर गायन विधा से होते है। रात्रि के चार पहरों में देवी नंदा समेत देव पस्वाओं का अवतरण और भक्तों को आशीर्वाद देकर फिर से अंतर्ध्यान होना मेले की विशेष पहचान को उद्गृत करता है। दूर-दूर के गांवों से मेहमानों का आगमन और प्रत्येक घर में मेले को लेकर तैयारियां हिमालयी गांवों की इस खूबसूरत परंपरा को सजीव बनाती है।

देवी नन्दा के समस्त श्रृंगार जागर गीतों की विशेष विधा के साथ संपन्न होते है। वर्षों से चली आ रही परंपरा का प्रमुख द्योतक हमारे देव पस्वा, जागर गायक, ढोल वादक और देवी नंदा को अपने गीतों, जागरों और भजनों से सजीव रखने वाले लोग है। ग्राम सेलंग के साथ ही पैनखंडा के सलूड़-डुग्रा, उर्गम, बामणी, मेरग, ढाक, परसारी, थैंग, भविष्यबदरी, ड़ाडों, रविग्राम, बड़ागांव, रिंगी, लाता, रैणी समेत सीमांत गांवों में नंदा अष्टमी मेला भब्य रूप से मनाया जाता है। दो या तीन दिवसीय मेले के आयोजन के पश्चात सभी माँ नंदा को कैलास विदा करते हुए भावुक हो उठते है और ऐसा प्रतीत होता है कि देवी नंदा हम सबके बीच वर्षों रहकर कैलास प्रस्थान कर रही है। देवी नंदा के जागर गीतों को गाने वाले ग्राम सेलंग निवासी देवेंद्र सिंह फरस्वांण कहते है कि गढ़वाल हिमालय की अधिष्ठात्री देवी नंदा का पहाड़ के गांवों में विशेष महत्व है। जिनकी पूजा पद्धति और जागरण अपने आप में विशिष्ट है। वो कहते है कि देवी नंदा के समस्त जागरण गीत अपने आप में विशेष स्थान रखते है और प्रमुख विधाओं में से एक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share

You cannot copy content of this page