सैकड़ों वर्ष बाद विश्वप्रसिद्ध सांस्कृतिक धरोहर रम्माण महोत्सव में पहुंचे ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज

यूनेस्को ने उत्तराखंड के चमोली जिले के सलूड- डुंगरा गांव के इस उत्सव को विश्व धरोहर के रूप में घोषित कर रखा है। भगवान राम के चरित्र पर आधारित ये उत्सव आज भी अत्यंत प्रासंगिक है, देश-देशान्तर और क्षेत्र के हजारों भक्त समुदाय इस उत्सव में सोत्साह सम्मिलित होते हैं।
सैकडों वर्षो के बाद किसी शंकराचार्य ने इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दी।
इस महोत्सव को आयोजित करने वाले आयोजकों ने बताया कि ज्ञात इतिहास में पिछले सैकडों वर्षों में कोई भी शंकराचार्य इस महोत्सव में सम्मिलित नही हुए, आज ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य का दर्शन और आशीर्वचन प्राप्त करके सब सम्पूर्ण क्षेत्रवासी अपने को कृतकृत्य समझ रहे हैं, शंकराचार्य महाराज ने कहा इस परम्परा को आगे बढाने में जिस प्रकार पूर्व में ज्योतिर्मठ का सहयोग रहता था, उसी परम्परा का परिपालन करते हुए आज भी ज्योतिर्मठ इसको संरक्षित करने के लिए सदा प्रतिबद्ध रहेगा।
अपने ज्योतिर्मठ प्रवास पर पधारे उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज से मन्दिर समिति और ग्राम प्रधान के संयुक्त तत्वावधान में अनुरोध किया गया था, आज शंकराचार्य जी को यहां पाकर सभी आनन्दित हुए।
शंकराचार्य जी महाराज ने सलूड-डुंग्रा गांव के सभी लोगों को धन्यवाद दिया और कहा कि हमारे पूर्वज जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी महाराज द्वारा आरम्भ किया गया ये महोत्सव आपने आज तक उसी मूल रूप में जीवित रखा है।
कहा कि वेद में बताए गए धर्म को जीने के लिए भगवान ने रामावतार धारण किया और धर्माचरण करके सबको दिखाया इसलिए आज भी मर्यादापुरुषोत्तम राम का चरित्र हमारे जीवन में अत्यंत प्रासंगिक है। उसी राम के आदर्श चरित्र को सामान्य जनों के हृदय में प्रवेश कराने के लिए आदि शङ्कराचार्य जी महाराज ने इस तरह के उत्सवों की शुरुआत अपने समय में की उसका प्रत्यक्ष उदाहरण आज भी हम सब रम्माण महोत्सव जैसे अवसर पर देखते हैं ।
इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा लिखित पुस्तक रम्माण का विमोचन किया शंकराचार्य जी महाराज के करकमलों से सम्पन्न हुआ।

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