तहसील सभागार में तहसील प्रशासन के संयोजन में आपदाग्रस्त क्षेत्रों के सुरक्षा कार्यों के तहत सीवेज–ड्रेनेज ट्रीटमेंट कार्यों की डीपीआर का पब्लिक प्रजेंटेशन दिया गया।
इस प्रजेंटेशन के लिए पहले जारी सूचना में नगर पालिका अध्यक्ष सभासद एवं जोशीमठ बचाओ संघर्ष समीति एवं अन्य पक्षकारों को इस बैठक में शामिल होने की न सूचना दी गई और न ही उपजिलाधिकारी द्वारा जारी पत्र में उल्लेख किया गया।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने इस संदर्भ में अपनी आपत्ति जिलाधिकारी को प्रेषित की। जिलाधिकारी चमोली के हस्तक्षेप के उपरान्त नया पत्र जारी कर दिया गया वह पत्र भी संबंधित लोगों को दिया नहीं गया ।
उपजिलाधिकारी के इस कृत्य पर जोशीमठ बचाओ संघर्षक समिति ने बैठक में अपनी आपत्ति जाहिर करते हुए उन पर पार्टी बनने, पक्षकार बनने का आरोप लगाते हुए उनके इस कृत्य की निंदा की है। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने बयान जारी कर कहा कि, जोशीमठ नगर पहले ही आपदा प्रभावित है उस पर ऐसे अधिकारी जो जनता को ही बांटने का कार्य करें और बड़ी आपदा हैं। उपजिलाधिकारी और सरकार से अक्षम अधिकारियों को यहां से तुरंत हटाने की मांग करते हैं।
जोशीमठ की जनता ने लड़कर आन्दोलन के बूते जोशीमठ की सुरक्षा के लिए सरकार को धन आवंटन हेतु राजी किया आज दो वर्ष से अधिक बीतने पर भी जोशीमठ स्थिरीकरण और सुरक्षा के कार्यों में कोई प्रगति नहीं दिख रही है।
आज हुई बैठक से यह साबित हुआ कि किस तरह अलग–अलग संस्थाओं को डीपीआर का कार्य दिया जा रहा है और वह किस तरह जनता के धन को बर्बाद कर रहे हैं।
सीवेज ड्रेनेज ट्रीटमेंट की आज सार्वजनिक की गई डीपीआर पर सभी उपस्थित लोगों ने घोर आपत्ति व्यक्त की। पूरी डीपीआर में तमाम खामियां हैं। डीपीआर में पूरे नगर को शामिल नहीं किया गया है।
सीवेज ट्रीटमेंट हेतु एक ही सीवेज ट्रीटमैन प्लांट प्रस्तावित है जो अभी नगर की वर्तमान की 25 हजार आबादी की जरूरतों के लिए ही पूरी तरह अपर्याप्त है, भविष्य में जनसंख्या बढ़ने पर क्या होगा?
नालों के ट्रीटमेंट के बारे में सर्वेक्षण करने वालों को उनके हेड–टेल का ही ठीक से पता नहीं है, सेना, आईटीबीपी के सीवेज की जानकारी नहीं है। जो कि उनकी लापरवाही और कार्यों के प्रति गम्भीरता के स्तर को दिखाता है ।
बयान में कहा गया है कि यह ढाई साल से जनता को मूर्ख बनाने के लिए डीपीआर–डीपीआर का खेल खेला जा रहा है। एक विभाग से दूसरे विभाग को डीपीआर की फाइल हस्तांतरित हो रही हैं। जिसमें जनता का धन बर्बाद किया जा रहा है। जनता के पैसे से डीपीआर वाली एजेंसियां अय्याशी कर रही हैं ।
ढाई साल बीतने पर भी अभी तक प्रभावितों का पूर्ण पुनर्वास नहीं हो पाया है। भूमि का मूल्य और अन्य बहुत से पुनर्वास मुआवजे के कार्य अधूरे हैं। जिससे जनता में दिन प्रतिदिन आक्रोश और अपने भविष्य की चिन्ता बढ़ रही है।