नवरात्रि में पैनखंडा की आराध्य देवी पर्णखंडेश्वरी (गढ़ी भवानी) के दर्शनों का है विशेष महत्व

पैनखंडा की आराध्य देवी गढ़ी भवानी के दर्शनों को नवरात्रि के पहले दिन से ही भक्तों की भीड़ उमड़नी शुरू हो गयी है। नवरात्रों में विशेषकर यहां दर्शन करने वाले भक्तों की भीड़ लगी रहती है। इसके साथ ही अन्य विशेष पर्वों पर भी यहां भक्तों आवागमन जारी रहता है। मंदिर वर्षभर श्रद्धालुओं के दर्शनों के लिए खुला रहा है। स्कन्दपुराण के केदारखंड में भी गढ़ी भवानी के दर्शनों के विशेष महत्व का वर्णन है।

जोशीमठ प्रखंड के पैनखंडा पट्टी की आराध्य देवी पर्णखंडेश्वरी जिसे गढ़ी भवानी के नाम से जाना जाता है। गढ़ी भवानी के प्रति क्षेत्र के लोगों की अगाध श्रद्धा और भक्ति का प्रमाण है कि वर्षभर यहां भक्तों का तांता लगा रहा है। दूर-दूर से भक्त यहां माँ भगवती के दर पर मत्था टेकने पहुंचते है। जोशीमठ नगर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर एक रमणीक स्थल है जहां चारों तरफ खुला आसमान और ऊंचे-ऊंचे हिमालय पर्वत की श्रृंखलाओं का दर्शन इस स्थान से किये जा सकते है। इस पवित्र स्थान पर एक सुंदर मंदिर है जिसमें भगवती पर्णखंडेश्वरी विराजित है।उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास ही देवी पार्वती का एक प्राचीन मंदिर है। इसका नाम मां पर्णखंडेश्वरी मंदिर है। ये मंदिर जोशीमठ नगर से 8 किलोमीटर की दूरी पर एक रमणीक स्थल पर स्थित है। बदरीनाथ धाम यात्रा के रास्ते में जोशीमठ से पहले इस मंदिर के दर्शन किए जा सकते है। इस मंदिर के बारे में स्कंद पुराण में भी लिखा हुआ है।
पर्णखंडेश्वरी गढ़ी मंदिर के मुख्य पुजारी अनुज सती के अनुसार पुराने समय में देवी सती ने दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे। इसके बाद आदि शक्ति ने हिमालय और मैना देवी के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। कन्या का नाम पार्वती रखा गया था। देवी पार्वती ने भगवान शिव की प्राप्ति के लिए इसी स्थान पर तप किया था।यत्र पूर्वं महादेवी तपः परममास्थिता।
पर्णखण्डाशना भूत्वा बहुवर्षसहस्त्रकम्।।
(स्कंदपुराण, केदारखंड, अध्याय 58, श्लोक 36)

इस श्लोक के अनुसार इसी स्थान पर देवी ने बैठकर के सहस्त्रवर्षों तक भगवान शंकर की प्राप्ति के लिए तप किया जिसे आज माँ पर्णखंडेश्वरी के नाम से जाना जाता है।

तदारभ्य महत्पुण्यं बभूव वरवर्णिनि।
पर्णखण्डाशना देवी जाता दैवतपूजिता।।
(स्कंदपुराण, केदारखंड, अध्याय 58, श्लोक 37)

तपस्या के पहले चरण में पार्वती ने पत्ते खाकर तप किया। इसलिए उनका एक नाम पर्णखंडेश्वरी पड़ा। तपस्या के अंतिम चरणों में देवी पार्वती ने पत्तों को आहार के रूप में लेना भी बंद कर दिया, तब देवी का नाम अपर्णा पड़ा है। उसी समय से देवी पार्वती की इस स्थान पर पर्णखंडेश्वरी के रूप में पूजा की जाती है।

पूर्व में इस मंदिर के प्रबंधन की जिम्मेदारी पैनखंडा पट्टी के मुख्य 7 गांवों पर थी लेकिन वर्तमान में मंदिर में प्रबंधन की जिम्मेदारी पैनी गांव द्वारा गठित गढ़ी भगवती मंदिर प्रबंधन समिति के पास है। जो मंदिर के रख-रखाव एवं समस्त विकास कार्यों के लिए योजना बनाती है।

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