विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर रम्माण मेले का आयोजन आज गुरुवार 19 गते बैशाख बुधवार को विश्व प्रसिद्ध सलूड-डुंग्रा गांव में आयोजित हुई। विश्व प्रसिद्ध रम्माण मेले का आयोजन सलूड-डुंग्रा की संयुक्त पंचायत आयोजत करती है जिसमें भूमि क्षेत्रपाल की पूजा अर्चना और 18 पत्तर का नृत्य और 18 तालों पर राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान का नृत्य होता है। दूर-दूर से क्षेत्रों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु सलूड गांव में रम्माण देखते आते है। संयुक्त राष्ट्र संघ के संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन द्वारा वर्ष 2009 में सलूड़-डुंग्रा की इस रम्माण को विश्व की सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया। 07 जोड़े पारंपरिक ढोल-दमाऊ की थाप पर मोर-मोरनी नृत्य, बण्या-बाणियांण, ख्यालरी, माल नृत्य सबको रोमांचित करने वाला होता है, कुरजोगी सबका मनोरंजन करता है। अंत मे भूमि क्षेत्रपाल देवता अवतरित होकर 1 वर्ष तक के लिए अपने मूल स्थान पर विराजित हो गए।
रम्माण के संयोजक डॉ कुशल सिंह भंडारी का कहना है कि सलूड़-डुंग्रा की रम्माण सब में प्रसिद्ध इसलिए है क्योंकि यहां का मुखौटा नृत्य सब मे विशिष्ट है और लोक संस्कृति से जुड़ा ये मेला सबको जोड़ने के साथ परंपरा को जीवित रखे हुए है। सलूड़-डुंग्रा की रम्माण वैदिक संस्कृति से जुड़ी और रामायण काल की घटनाओं को मूर्त रूप देती सांस्कृतिक कला है जिसका आयोजन 500 वर्षों से भी अधिक समय से अनवरत होता चला आ रहा है। हजारों की संख्या में सलूड़-डुंग्रा की रम्माण में शामिल श्रद्धालुओं के कारण ही ये रम्माण विश्व की सांस्कृतिक धरोहर है।
उत्तराखण्ड में मुखौटा नृत्य का जिक्र वैदिक काल से होता आ रहा है, इस लिए आज भी उत्तराखंड में रामायण-महाभारत काल की सेकड़ों विधाएं मौजूद हैं, जिनमें से कई विधाएं विलुप्त हो गई है और कई विधाएं विलुप्त होने की कगार पर पहुच चुकी है, लेकिन कई लोगों के अथक प्रयासों एवं दृढ़ निश्चय के द्वारा कई विधाओं के संरक्षण और विकास के लिए अभूतपूर्व काम किया है और उत्तराखण्ड को समूचे विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान दिलाई है।
जो उत्तराखंड की लोक संस्कृति से रू-ब-रू कराती हैं। साथ ही वर्षों पुरानी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने का प्रयास भी करते हैं। ऐसी ही एक लोक संस्कृतिक रम्माण है। रम्माण मेले में मेला समिति द्वारा 5000 से भी अधिक आगंतुकों के लिए भोजन व्यवस्था के लिए विशाल भंडारे का आयोजन किया गया था। इस वर्ष जिला प्रशासन चमोली द्वारा भी मेले को भव्य रूप देने और मेले के प्रचार-प्रसार हेतु पूर्व से ही तैयारी की गई थी। ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज भी मेले में उपस्थित रहे जो कि पहला मौका है कि कोई शंकराचार्य रम्माण मेले में पहुंचे। मान्यता है कि पूर्व में रम्माण और अन्य मुखौटे नृत्य का प्रारंभ शंकराचार्य द्वारा ही किया गया था।
इस अवसर पर ज्योतिष्पीठ के प्रभारी डंडी सन्यासी प्रत्यक्चैतन्य मुकुन्दानंद जी महाराज, बदरीनाथ विधायक लखपत बुटोला, नगर पालिका ज्योतिर्मठ अध्यक्षा देवेश्वरी शाह, ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष विक्रम फरस्वांण, नगर अध्यक्ष हरेंद्र राणा, महेंद्र नंबूरी सहित ग्राम सभा सलूड़-डुंग्रा तथा बाहर से आये भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे।