पैनखंडा क्षेत्र का चुन्यां त्योहार सीमांत क्षेत्र की रीति ही नहीं बल्कि विशेष परंपरा की अद्भुत पहचान भी है

जनपद चमोली के ज्योतिर्मठ प्रखंड के सीमांत पैनखंडा के ग्रामीण अंचलों में आज भी त्योहारों को बड़े धूमधाम से और पारंपरिक तौर से मनाया जाता है, आयोजित किया जाता है।

ऐसा ही एक त्योहार है मकर सक्रांति जिसे ज्योतिर्मठ के पैनखंडा क्षेत्र के कुछ गांवों में चुन्या त्योहार के नाम से जाना जाता है। मकर सक्रांति या उत्तरायणी त्योहार को चुन्या त्योहार इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस त्योहार के दिन एक विशेष तरह का पकवान बनाया जाता है जिसे चुन्या कहा जाता है।

चुन्या बनाने की विशेष विधि और कला आज भी इस क्षेत्र में विद्यमान है, हालांकि वर्तमान में इस पकवान से नई पीढ़ी बिमुख होती जा रही है।

प्राचीन काल में जब माघ माह की संक्रांति और सक्रांति के पहले दिन से ही चुन्या त्योहार मनाया जाता है, तो उस समय चुन्या बनाने और उसके आटे को बनाने की तैयारी हप्तेभर पहले से की जाती है। चुन्या बनाने के लिए सबसे पहले उसका आटा तैयार किया जाता है जिसे स्थानीय बोली में पीठा कहा जाता है। चांवल, काली दाल और गेंहू के मिश्रण को पहले धोया जाता है और फिर धूप पर सुखाया जाता है। फिर मिश्रण को इकट्ठा कर घराट में पीसा जाता है उसके बाद आटे को कुछ घंटे के लिए भिगाया जाता है। उसके बाद विशेष विधि से गुड़ को भिगाये हुए आटे में मिलाया जाता है। कुछ समय के लिए उस आटे को भिगोए रखा जाता है। उसके बाद चुन्या को तेल में हल्की आंच पर पकाया जाता है। हालांकि वर्तमान की आधुनिक हो चली पीढ़ी चुन्या का आटा तैयार करने के बजाय मैदे के आटे को ही चुन्या बनाने के लिए प्रयोग करना सरल समझती है, नतीजतन पारंपरिक चुन्या घरों से गायब होते जा रहे है। पर्वतीय क्षेत्रों के ग्रामीण अंचलों में बसे पैनखंडा के गांवों में मकर सक्रांति का विशेष महत्व है। ग्रामीण घरों में इस त्योहार के दिन लोग दीवारों पर भगवान सूर्य और उसके सेवकों जिन्हें पौंणा कहते है। चुन्या के लिए बनाए गए घोल से एक दल बनाते हैं और उसमें ये प्रदर्शित करने की कोशिश करते है कि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की तरफ मकर राशि में प्रवेश कर रहे है। दो दिनों तक मनाए जाने वाले इस त्योहार के दिन चुन्या के अलावा अनेक पकवान बनाया जाते है और सक्रांति की सुबह सबसे पहले छोटे बच्चे ले कावा चुन्या के उद्घोष से कौवों को चुन्या खिलाते है। मान्यता है कि इस दिन से कौवे जो वर्ष के अधिकतर दिन घरों से गायब दिखते है वो अपना हिस्सा लेने घरों को आ जाते है और घरों में छोटे बच्चे उन्हें चुन्या खिलाते है। मकर संक्रांति के दिन स्नान का भी विशेष महत्व है और लगभग सभी प्रयागों और धार्मिक स्थलों पर स्नान का पुण्य इस दिन पर माना जाता है।

इस त्योहार के दिन चुन्या लगभग हर घर में मुख्य पकवान और मिठाई के रूप में बनाये जाते है और दूर-दूर तक अपने नाते-रिश्तेदारों को इस पकवान, मिठाई को उपहार/कल्यो के रूप में भेजते है। मकर सक्रांति से माघ माह की शुरुवात होती है और माना जाता है कि इस माह के शुरुआत से धरती में फिर से नवांकुर प्रस्फुटित होते हैं और धरती में हरियाली उगने लगती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share

You cannot copy content of this page