कहीं खो गए है खोली के गणेश और मोरी के नरैण

पहाड़ो में बने पौराणिक घर जो कि अब या तो खड़हर हो चुके हैं या फिर देख-रेख और इंसानी बसेरों के अभाव में खड़हर होने की कगार पर है, उनकी देहरियों, मुख्य द्वारों और मोरियों, जिनके ऊपर सुन्दर कलाकृति से गणेश और नारायण यानी विष्णु की कलाकृति उकेरी हुयी रहती थी आज वो सब ख़त्म होने की कगार पर है या खत्म हो गए है। पहाड़ी जीवन तथा यहाँ पैदा होती समस्याओं से लड़ने और जीवन जीने की हिम्मत पैदा करने से लिए मजबूत आत्मविश्वास और हौसला तो चाहिए ही साथ में मेल-जोल, रीती-रिवाज़, परंपरा और संस्कृति भी समृद्ध और प्रभावी होनी चाहिए। आज पहाड़ों में ज्यादातर पुराने घर खँडहर जो गए है और उनका स्थान सीमेंट के आधुनिक मकानों ने ले लिये है। घर-गांवों में जो पुराने मिट्टी-पठाल और लकड़ी के घर होते थे उनमें हमारी संभ्यता, संस्कृति और परंपरा की झलक दिखती थी। इन घरों की बनावट और कला सदाबहार थी। आज सीमेंट के मकान सिर्फ दिखावटी है वो वातानुकूलित नही है। घर गांवों में जिन भी परिवारों ने पुराने नक्कासीदार मकानों को संजो कर रखे है वही असल में पहाड़ी जीवन, लोक कला और संस्कृति का असली संरक्षक है।

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