चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ के कपाट बम-बम भोले के जयकारों के साथ खुले

पंच केदारों में शामिल भगवान रुद्रनाथ जी के कपाट आज प्रातः 5 बजे ब्रह्ममुहूर्त में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ सैकड़ों भक्तों की उपस्थिति में भगवान शिव के जयकारों के साथ खुल गए है। इसी के साथ रुद्रनाथ घाटी में पसरा छः मासी सन्नाटा भी दूर हो गया। उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित रुद्रनाथ में भगवान शिव के मुख रूप को पूजा होती है तथा भगवान यहां भक्तों को एकानन रूप में दर्शन देते है। रुद्रनाथ धाम जहां भक्तों की अगाध शक्ति और भक्ति का प्रतीक है वहीं देशी-विदेशी ट्रैकरों के लिए ट्रैकिंग के लिए मुफीद भी है। गोपेश्वर के सगर गांव से 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है।

कैसे पहुंचे रुद्रनाथ

गोपेश्वर से सगर गांव 3 किमी0 की दूरी पर है जहां से मोली खर्क और वहां से ल्वीटी बुग्याल करीब तीन किलोमीटर की चढाई के बाद आता है पनार बुग्याल। दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित पनार रुद्रनाथ यात्रा मार्ग का मध्य द्वार है जहां से रुद्रनाथ की दूरी करीब ग्यारह किलोमीटर रह जाती है। यह ऐसा स्थान है जहां पर वृक्ष रेखा समाप्त हो जाती है और मखमली घास के मैदान यकायक सारे दृश्य को परिवर्तित कर देते हैं। अलग-अलग किस्म की घास और फूलों से लकदक घाटियों के नजारे यात्रियों को मोहपाश में बांधते चले जाते हैं। जैसे-जैसे यात्री ऊपर चढता रहता है प्रकृति का उतना ही खिला रूप उसे देखने को मिलता है। इतनी ऊंचाई पर इस सौंदर्य को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है। पनार में डुमुक और कठगोठ गांव के लोग अपने पशुओं के साथ डेरा डाले रहते हैं। यहां पर ये लोग यात्रियों को चाय आदि उपलब्ध कराते हैं। पनार से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का जो विस्मयकारी दृश्य दिखाई देता है वो दूसरी जगह से शायद ही दिखाई दे। नंदादेवी, कामेट, त्रिशूली, नंदा घुंघटी आदि शिखरों का यहां बडा नजदीकी नजारा होता है। पनार के आगे पित्रधार नामक स्थान है पित्रधार में शिव, पार्वती और नारायण मंदिर हैं। यहां पर यात्री अपने पितरों के नाम के पत्थर रखते हैं। यहां पर वन देवी के मंदिर भी हैं जहां पर यात्री श्रृंगार सामग्री के रूप में चूडी, बिंदी और चुनरी चढाते हैं। रुद्रनाथ की चढाई पित्रधार में खत्म हो जाती है और यहां से हल्की उतराई शुरू हो जाती है। रास्ते में तरह-तरह के फूलों की खुशबू यात्री को मदहोश करती रहती है। यह भी फूलों की घाटी सा आभास देती है।

पनार से पित्रधार होते हुए करीब दस-ग्यारह किलोमीटर के सफर के बाद यात्री पहुंचता है पंचकेदारों में चौथे केदार रुद्रनाथ में। यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है। यहां शिवजी गर्दन टेढे किए हुए हैं। माना जाता है कि शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है यानी अपने आप प्रकट हुई है। इसकी गहराई का भी पता नहीं है। मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी विष्णु जी की मूर्ति भी है। मंदिर के एक ओर पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी के साथ ही छोटे-छोटे मंदिर मौजूद हैं।

मंदिर में प्रवेश करने से पहले नारद कुंड है जिसमें यात्री स्नान करके अपनी थकान मिटाता है और उसी के बाद मंदिर के दर्शन करने पहुंचता है। रुद्रनाथ का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि यहां के सौदर्य को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। शायद ही ऐसी कोई जगह हो जहां हरियाली न हो, फूल न खिले हों। रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर थार, थुनार और मृग जैसे जंगली जानवरों के दर्शन तो होते ही हैं, बिना पूंछ वाले शाकाहारी चूहे भी आपको रास्ते में फुदकते मिल जाएंगे। भोज पत्र के वृक्षों के अलावा ब्रह्मकमल भी यहां की ऊंचाइयों में बहुतायत में मिलते हैं। यूं तो मंदिर समिति के पुजारी यात्रियों की हर संभव मदद की कोशिश करते हैं। लेकिन यहां खाने-पीने और रहने की व्यवस्था स्वयं करनी पडती है। जैसे कि रात में रुकने के लिए टेंट हो और खाने के लिए डिब्बाबंद भोजन या अन्य चीजें। रुद्रनाथ के कपाट परंपरा के अनुसार खुलते-बंद होते हैं। शीतकाल में छह माह के लिए रुद्रनाथ की गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में लाई जाती है जहां पर शीतकाल के दौरान रुद्रनाथ की पूजा होती है। आप जिस हद तक प्रकृति की खूबसूरती का अंदाजा लगा सकते है, यकीन मानिए यह जगह उससे ज्यादा खूबसूरत है।

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