सीमांत घाटी में गूंज फागी सुमित रतूडी की ‘बाँसुरी’ की मनमोहक धुनें

संगीत की धुन से हमेशा प्रेम प्रकट होता है। बांसुरी की धुन पौराणिक काल से प्रेम का प्रतीक रही है। बांसुरी सभी धर्म और संप्रदाय के लोग बजाते हैं। बांसुरी की चर्चा होते ही भगवान कृष्ण की मनमोहक छवि मन में आती है। कृष्ण जब भी तस्वीरों में, मन के मंदिर में दिखते हैं उनके दोनों हाथों में बांसुरी होती है। कृष्ण बांसुरी से प्रेम की तान छेड़ते हैं। कृष्ण बांसुरी से गोपियों को रिझाते हैं। कृष्ण बांसुरी की धुन से प्रेम मार्ग बताते हैं। कृष्ण बांसुरी की धुन से प्रेम करना सिखाते हैं। कृष्ण बांसुरी की धुन से मानव जाति का कल्याण करते हैं। कहते हैं कि बांसुरी को कई नाम मिले हैं। बांसुरी को लोग वंशी, बेन, वेणु, बीन और बंसी भी कहते हैं। भगवान कृष्ण को बांसुरी की वजह से वंशिका, बंशीधर और मुरलीधर जैसे नामों से पुकारा जाता है। इसकी चर्चा भागवत गीता में भी है।सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ निवासी बांसुरी वादक सुमित रतूडी की बाँसुरी की मनमोहक धुन इन दिनो सोशल साइट्स पर लोगो को बेहद भा रही है। 20 वर्षीय बांसुरी वादक सुमित रतूडी बांसुरी से पहाड की लोकसंस्‍कृति को चरितार्थ करती हुई मनमोहक धुन से लोगो को आनंदित और रोमांचित कर रहें हैं। सुमित बांसुरी से प्रख्यात कुमांऊनी लोकगायक गोपाल बाबू गोस्वामी, पप्पू कार्की से लेकर गढरत्न नरेन्द्र सिंह नेगी, प्रीतम भरतवाण, माया उपाध्याय सहित विभिन्न गायको की लोकप्रिय गीतों की धुन को अपनी आवाज देते हैं, युवा पीढी सोशल नेटवर्किंग साइट इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक, ट्विटर पर सुमित की बांसुरी की मनमोहक धुन की दिवानी है उनके हर एक बांसुरी वीडियोज पर हजारों व्यूज, लाईक और शेयर मिलते हैं। वटसप यूनिवर्सिटीज, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, मोबाइल, माॅल और गैजेट के इस दौर में सुमित जैसे युवा का परम्परागत वाद्य यंत्र बाँसुरी की ओर झुकाव वाकई काबिलेतारीफ है। लोकसंगीत में अपना भविष्य देखने वाले 20 वर्षीय सुमित बीए प्रथम वर्ष के छात्र हैं। उनके पिताजी प्रकाश चंद्र रतूड़ी बद्रीनाथ मंदिर समिति में कार्यरत हैं जबकि सरला देवी गृहणी है। बेहद सरल, मिलनसार, सौम्य और मृदुभाषी व्यक्तित्व के धनी सुमित बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। संगीत से लगाव उन्हें बचपन से ही था, सुमित को अपने पिताजी से लोकसंगीत की समझ मिली। जबकि उनकी प्रेरणा उत्तराखंड के प्रसिद्ध बाँसुरी वादक महेश चंद्र है। जिनकी वजह से ही उनका बाँसुरी वादन के प्रति झुकाव हुआ है।

सुमित नें कैल बाजे मुरूली, छाना बिलौरी, कन क्वे हिटण मेन, दिदो ये भू बुग्याल माटी पाणी बिक जालू, उतराणी कौथिग लगेरे सरूय का किनारा, तेरू मछोई गाड बगिगे, घुघुती घुरेण लगी मेरा मैत की, सैरा गौं की माया बांद, सुलपा की साज, ह्यूंदा का दिन फिर बोडी ऐगिने, सुण ले दगडिया बात सुणी जा, सरूली मेरू जिया लगिगे, क्रीम पाउडर घिसने किले नी, द्वी गति बैशाख सुरूमा.. सहित अन्य गीतो को अपनी नौसुरिया मुरूली की मनमोहक धुन से आवाज दी है। जोशीमठ की थाती ने उन्हे पहाडो से लगाव और जुड़ाव की सीख दी। बकौल सुमित मेरी कोशिश है की बांसुरी से पहाड की आवाज बन सकूं। पहाड की थाती माटी, जल, जंगल, जीवन से लेकर पहाड के लोकसंगीत को बांसुरी के जरिए नयी पहचान दिला सकूं, अभी तो महज शुरूआत भर है मंज़िल कोसों दूर है।

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